प्रदूषण पर निबंध | Essay on Pollution in Hindi | प्रदूषण एक समस्या
प्रदूषण पर निबंध | Essay on Pollution in Hindi | प्रदूषण एक समस्या
लघु निबंध –
प्रदूषण शब्द लैटिन भाषा के ‘Pollutio’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है गंदा करना। हाल के वर्षों में प्रदूषण की दर बहुत बढ़ गई है, लेकिन, प्रदूषण क्या है? ‘प्रदूषण प्रदूषक के रूप में हानिकारक पदार्थों को मिलकर पर्यावरण, भूमि, पानी और हवा को गंदा करने की प्रक्रिया है।’ प्रदूषक वे पदार्थ हैं जो वायु, जल आदि को दूषित करते हैं, जैसे- धुआँ, धूल, कचरा आदि। प्रदूषण को कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे कि वायु, जल, मृदा, ध्वनि, रेडियोएक्टिव और रासायनिक प्रदूषण आदि।
यह प्राकृतिक संतुलन के बिगड़ने से होता है। वृक्षों की अँधा-धुंध कटाई करने से प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है। औद्योगिक क्रांति के कारण उद्योगों और कारखानों की संख्या में वृद्धि हुई है और ये उद्योग और कारखाने बहुत अधिक प्रदूषण का कारण बनते हैं।
प्रदूषण ने पर्यावरण में ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि हुई है। इसके कारण वातावरण में ओजोन परत भी कुछ स्थानों पर कम हो गई है, जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों पृथ्वी की सतह तक आसानी से पहुँच जाती है। तापमान में यह वृद्धि और पराबैंगनी किरणों की उपस्थिति ने पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों को विलुप्त कर दिया है।
इसी वजह से ही सर्दी-गर्मी और वर्षा का चक्र भी ठीक प्रकार से नहीं चल पाता है। सूखा, बाढ़, ओला सभी प्राकृतिक आपदाएं भी इसके कारण ही आती हैं। जल प्रदूषण की वजह से नदियों, तालाबों और समुद्रों में जीव-जंतु मर रहे हैं।
प्रदूषण को कम करने के लिए हम सबको अपने दैनिक जीवन में कुछ बदलाव करने की जरुरत है। जैसे कि कागज़ के उपयोग को काम करें। कागज़ बनाने के लिए हर वर्ष अनेकों पेड़ काटे जाते हैं। प्लास्टिक बैग का उपयोग बंद करें। लोगों को घरों का कचरा बाहर खुले में नहीं फेंकना चाहिए। अपने वाहनों में हल्की आवाज वाले ध्वनि संकेतों का प्रयोग करना चाहिए। नदियों और तालाबों में कारखानों के गंदे पानी और कचरे को जाने से रोकना चाहिए।
प्रदूषण को कम करने के लिए सामान्य जागरूकता होना बहुत जरूरी है। इसे रोकने के लिए हमें जरुरी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि हमारी इस पृथ्वी की खूबसूरती बरकरार रह सके। जितनी पृथ्वी पर हरियाली और पेड़-पौधे खत्म होंगे उतना ही यह अपनी चरम सीमा पर होगा। इसलिए ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाएं।
विस्तृत निबंध –
प्रस्तावना –
विश्व में प्रदूषण एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा है | प्रदूषण शब्द लैटिन भाषा के ‘Pollutio’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है गंदा करना। लेकिन, प्रदूषण क्या है? ‘प्रदूषण प्रदूषक के रूप में हानिकारक पदार्थों को मिलकर पर्यावरण, भूमि, पानी और हवा को गंदा करने की प्रक्रिया है।’ प्रदूषक वे पदार्थ हैं जो वायु, जल आदि को दूषित करते हैं, जैसे- धुआँ, धूल, कचरा आदि। इससे केवल मानव ही नहीं बल्कि पूरा जीव समुदाय भी प्रभावित हुआ है। इसके दुष्प्रभावों को चारो तरफ देखा जा सकता है। यदि यह ऐसे ही बढ़ता जायेगा तो भविष्य में मनुष्य जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल हो जायेगा।
प्रदूषण के प्रकार –
प्रदूषण को कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे कि वायु, जल, मृदा, ध्वनि, रेडियोएक्टिव एवं रासायनिक प्रदूषण आदि।
1. वायु प्रदूषण : वायु प्रदूषण को सबसे खतरनाक माना जाता है, इसका मुख्य कारण उद्योगों तथा वाहनों से निकलने वाला धुआं है। जब वायु में हानिकारक गैसें, जैसे कार्बन-डाई-आक्साइड और कार्बन-मोनो-आक्साइड आदि मिलती हैं तो ये वायु को प्रदूषित कर देती है, जिससे सांस लेना भी कठिन हो जाता है और फेफड़ो से संबंधित कई तरह की बिमारियां पैदा हो जाती है। इसलिए इसको रोकना बहुत ही आवश्यक है।
2. जल प्रदूषण : जल मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता है, इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जब जल में बाहरी अशुद्धियाँ के मिल जाने से जल दूषित हो जाता है तो इसे ही जल प्रदूषण कहते हैं। यह समस्या मनुष्य द्वारा उतपन्न की हुई समस्या है। उद्योगों और कारखानों से निकलने वाला गन्दा पानी नदियों में छोड़ दिया जाता है, जिससे नदियों का जल गन्दा हो जाता है। इसके साथ गांव और कई जगह पर लोग खुले में शौच, कपड़े धोना और पशुओं को नहलाते है। इससे कई तरह की पेट की बीमारियां हो जाती है, जैसे हैजा, टाइफाइड, दस्त आदि। प्रदूषित जल से जल में रहने वाले जीव भी मर जाते है।
3. मृदा प्रदूषण : बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण द्रव एवं ठोस अवशिष्ट पदार्थ मिट्टी में मिलकर उसे प्रदूषित कर रहें हैं, जिससे भूमि में प्रदूषण फैल रहा है। ठोस कचरा प्राय: घरों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से भी आता है। कचरे के ढेर टीलों का रूप ले लेते हैं और इस कचरे में राख, काँच, फल तथा सब्जियों के छिल्के, कागज, कपड़े, प्लास्टिक, रबड़, चमड़ा, इंर्ट, रेत, इत्यादि वस्तुएँ सम्मिलित हैं। वर्षा के समय जल के साथ मिल कर यह कचरा दूर दूर तक जा कर मृदा को प्रदूषित करते हैं।
4. ध्वनि प्रदूषण : वाहनों, मोटर साइकिलों, डीजे, लाउडस्पीकर, कारखानों आदि की वजह से जो शोर होता है उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। यह मनुष्यों में होने वाले मानसिक तनाव का मुख्य कारण है, जो कि मस्तिष्क पर कई दुष्प्रभाव डालने के साथ-साथ उनके सुनने की शक्ति को भी घटाता है।
5. रेडियोएक्टिव प्रदूषण : परमाणु परिक्षण करने से जो प्रदूषण होता है उसे रेडियोएक्टिव प्रदूषण कहते हैं। रेडियोएक्टिव प्रदूषण परमाणु बमों के फटने तथा परीक्षण, खनन आदि से उत्पन्न होता है। इसके साथ ही परमाणु बिजली केंद्रों में भी कचरे के रुप में उत्पन्न अवयव से भी यह बढ़ता है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय हिरोशिमा और नागासाकी पर जो परमाणु बम गिराए गये थे उनके गंभीर परिणामों को आज भी देखा जा सकता है।
6. रासायनिक प्रदूषण : कृषि उपज में कारखानों से बहते हुए अशुद्ध तत्वों के आलावा अनेक तरह के रासायनिक उर्वरकों और डीडीटी जैसी हानिकारक दवाईयों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इसे ही रासायनिक प्रदूषण कहते हैं।
प्रदूषण के कारण –
प्रदूषण प्राकृतिक संतुलन के बिगड़ने से होता है | वृक्षों की अँधा-धुंध कटाई करने से इसकी मात्रा बढ़ जाती है। इसमें वृद्धि का मुख्य कारण औद्योगिक क्रांति है। औद्योगिक क्रांति के कारण उद्योगों और कारखानों की संख्या में वृद्धि हुई है और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ये उद्योग और कारखाने बहुत अधिक प्रदूषण का कारण बनते हैं। खनिज पदार्थों के लिए जमीनों को खोदा जाता है जिससे भूमि प्रदूषण बढ़ता है।
देश में लोगों की बढती जनसंख्या और लोगों के गांवों से शहर भागने की वजह से पेड़ों को काटा जाता है। कारखानों से गैसें जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया आदि गैसें निकलती है जो वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है।
प्रदूषण के दुष्परिणाम –
प्रदूषण ने पर्यावरण में ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि हुई है। इसके कारण वातावरण में ओजोन परत भी कुछ स्थानों पर कम हो गई है, जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों पृथ्वी की सतह तक आसानी से पहुँच जाती है। तापमान में यह वृद्धि और पराबैंगनी किरणों की उपस्थिति ने पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों को विलुप्त कर दिया है। इसके कारण ही कभी बिना मौसम के बरसात हो जाती है तो कभी एक बूंद भी जमीन पर नहीं गिरती है। इस वजह से कृषि को बहुत नुकसान हो रहा है।
इसका एक अन्य मुख्य प्रभाव अम्लीय वर्षा है, जो वाहनों से निकलने वाली हानिकारक गैसों, जैसे सल्फर डाय-ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ हवा को दूषित करती है। ये गैसें जब पानी के साथ प्रतिक्रिया करती हैं तो वे सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड बनाती हैं और अम्लीय वर्षा के रूप में पृथ्वी की सतह पर गिरती हैं। इस अम्लीय वर्षा से संगमरमर और अन्य पत्थरों का क्षरण होता है जिसे ‘मार्बल कैंसर’ या ‘स्टोन कोढ़’ भी कहा जाता है।
इसी वजह से ही सर्दी-गर्मी और वर्षा का चक्र भी ठीक प्रकार से नहीं चल पाता है। सूखा, बाढ़, ओला सभी प्राकृतिक आपदाएं भी इसी के कारण ही आती हैं। जल प्रदूषण की वजह से नदियों, तालाबों और समुद्रों में जीव-जंतु मर रहे हैं।
प्रदूषण को रोकने के उपाय –
प्रदूषण को कम करने के लिए हम सबको अपने दैनिक जीवन में कुछ बदलाव करने की जरुरत है। जैसे कि कागज़ के उपयोग को काम करें। कागज़ बनाने के लिए हर वर्ष अनेकों पेड़ काटे जाते हैं, जो इसका एक प्रमुख कारण है। कागज़ के स्थान पर डिजिटल प्रयोग को महत्त्व दें। फल-सब्जियों को कीटनाशकों के उपयोग के बिना उगाया जाए। प्लास्टिक बैग का उपयोग बंद करें। प्लास्टिक के स्थान पर कागज़ या कपड़े की थैलियों का उपयोग करें।
लोगों को घरों का कचरा बाहर खुले में नहीं फेंकना चाहिए। सूखे और गीले कचरे के लिए अलग-अलग डस्टबिन का उपयोग करें। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएं ताकि अम्लीय वर्षा को रोक जा सके।
अपने वाहनों में हल्की आवाज वाले ध्वनि संकेतों का प्रयोग करना चाहिए। कोयले जैसे ईंधन को त्यागकर सौर ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा जैसे विकल्पों को चुनना चाहिए। नदियों और तालाबों में कारखानों के गंदे पानी और कचरे को जाने से रोकना चाहिए। घरों और कारखानों में प्राय ऊँची चिमनियाँ बनवानी चाहिएँ जिससे धुआं ऊपर की तरफ जाये।
उपसंहार –
प्रदूषण को कम करने के लिए सामान्य जागरूकता होना बहुत जरूरी है। इसे रोकने के लिए हमें जरुरी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि हमारी इस पृथ्वी की खूबसूरती बरकरार रह सके। जितनी पृथ्वी पर हरियाली और पेड़-पौधे खत्म होंगे उतना ही यह अपनी चरम सीमा पर होगा। इसलिए ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाएं।
इस पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाने के लिए मनुष्य को वह सारे कार्य बंद कर देने चाहिए, जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। पृथ्वी और प्रकृति के हित के लिए प्रदूषण को नियंत्रित करने की अत्यंत आवश्यकता है। हमारे द्वारा किये गये सामूहिक प्रयासों से ही इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।