कारक प्रकरण – कारक के भेद, विभक्ति और चिह्न | Karak in Sanskrit (Sanskrit Vyakaran)
कारक का अर्थ – ‘कारक’ शब्द का अर्थ है क्रिया से सम्बन्ध रखने वाला। कारक शब्द ‘कृ’ धातु में ‘ण्वुल्’ प्रत्यय लगकर बना है, जिसका अर्थ है ‘करने वाला’। क्रिया को सम्पन्न करने में जो साधन का कार्य करे, कारक कहलाता है। इसलिए कारक को साधन भी कहते हैं। कारक प्रकरण संस्कृत व्याकरण का मेरुदण्ड है।
कारक की परिभाषा –
‘क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्, क्रियाजनकत्वं वा कारकत्वम्’ अर्थात् क्रिया मे जिसका अन्वय हो या जो क्रिया का जनक हो, वह कारक कहलाता है। जैसे – रामः गृहं गच्छति। राम घर जाता है। यहाँ राम और घर का ‘जाना’ क्रिया से सीधा सम्बन्ध है, अतः राम और घर दोनों ही कारक है।
इसके विपरीत जिनका क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं होता, वे कारक नहीं होते हैं। जैसे – रमेशः सुरेशस्य गृहं गच्छति। रमेश सुरेश के घर जाता है। इस वाक्य में रमेश जाना क्रिया को संपन्न करने वाला है और घर जाया जा रहा है, इसलिए रमेश और घर जाना क्रिया से सम्बंधित होने के कारण ये दोनों ही कारक है, परन्तु सुरेश का जाना क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है, उसका सम्बन्ध तो घर से है, अतः क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध न होने के कारण सुरेशस्य कारक नहीं होगा।
कारक के भेद या प्रकार –
कर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानाधिकरणमित्याहः कारकाणि षट्॥
कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण – संस्कृत में ये छः कारक कहे गये हैं।
कारक | विवरण | सूत्र |
---|---|---|
कर्ता | क्रिया को करने वाला | प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा |
कर्म | क्रिया का कर्म | कर्तुरीप्सिततमं कर्म, कर्मणि द्वितीया। |
करण | क्रिया के होने में अत्यंत सहायक | साधकतमं करणम्, कर्तृकरणयोस्तृतीया। |
सम्प्रदान | जिसके लिए क्रिया की जाए | कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्, चतुर्थी सम्प्रदाने। |
अपादान | जिससे क्रिया दूर हो या निकले | ध्रुवमपायेऽपादानम्, अपादाने पञ्चमी। |
अधिकरण | जहाँ क्रिया सम्पन्न हो | आधारोऽधिकरणम् सप्तम्यधिकरणे च। |
क्रिया के साथ षष्ठी (सम्बन्ध) का सीधा सम्बन्ध न होने के कारण उसे कारक नहीं माना गया है, वह विभक्ति कहलाता है। कारक के सम्बन्ध को अभिव्यक्त करने के लिए जो प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं, विभक्ति कहलाते हैं। विभक्तियाँ सात प्रकार की होती हैं।
विभक्ति | कारक | चिन्ह् |
---|---|---|
प्रथमा | कर्ता | ने |
द्वितीया | कर्म | को |
तृतीया | करण | से, द्वारा |
चतुर्थी | सम्प्रदान | के लिये |
पंचमी | अपादान | से, अलग होने के लिए |
षष्ठी | सम्बन्ध | का, की, के |
सप्तमी | अधिकरण | में, पे, पर |
कारक / विभक्ति के भेद –
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