भाद्रपद चौथ / बहुला चौथ / भादूड़ी चौथ व्रत पूजन विधि एवं व्रत कथा

भाद्रपद चौथ / बहुला चौथ / भादूड़ी चौथ व्रत पूजन विधि एवं व्रत कथा

भाद्रपद चौथ / बहुला चौथ / भादूड़ी चौथ व्रत सातुड़ी तीज के अगले दिन होता है। कभी – कभी सातुड़ी तीज और भादूड़ी चौथ दोनों एक ही दिन होते हैं।

भादूड़ी चौथ व्रत पूजन विधि –

भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भादूड़ी चौथ माता व गणेशजी भगवान का पूजन किया जाता हैं। इस दिन उपवास किया जाता हैं। चौथ माता की पूजा के समय महिलायें सोलह सिंगार करके चौथ माता का पूजन कर कथा सुनती हैं। रात्रि में चाँद उगने पर चाँद को अर्ध्य देकर सासुजी को बायना देकर पांव छूकर आशीवाद उनका आशीर्वाद लेती हैं।

भाद्रपद चौथ / बहुला चौथ / भादूड़ी चौथ व्रत पूजन विधि एवं व्रत कथा

भादूड़ी (बहुला) चौथ व्रत कथा – 1

एक गाँव में एक माँ और बेटा रहते थे। बेटा गायें चराकर अपना घर चलाता था। उसकी माँ चौथ माता का व्रत किया करती थी। भाद्रपद चौथ के दिन वह पाँच चूरमे के लड्डू बनाकर, एक लड्डू चौथ माता को, एक गणेश जी को, एक ब्राह्मण को देती, एक बेटे को खिलाती और एक खुद खाती थी।

एक दिन पड़ोसन ने बुढ़िया के बेटे को सिखा दिया कि तू तो इतनी मेहनत करता हैं और तेरी माँ चूरमा बनाकर खाती है, और तुझे सिर्फ एक लड्डू देती हैं तथा बाकी ठंडी रोटियाँ खिलाती है। लड़का पड़ोसन की बातों में आ गया। वह माँ से बोला, माँ ठंडी रोटी खाकर मेरे से गाये नहीं चराई जाती। तुम चौथ माता का व्रत छोड़ दो।

तब माँ बोली बेटा मैं तो तेरी सुख शांति के लिए चौथ माता का व्रत करती हूँ। मैं चौथ माता का व्रत करना नही छोड़ सकती। तो बेटा विदेश जाने लगा, तब माँ बोली बेटा यह चौथ माता के आखे (कहानी सुने हुए गेहूँ के दाने) अपने पास रख ले। यदि तुझ पर कोई संकट आये तो चौथ माता का नाम लेकर इन्हें अपने चारों और पूर देना, तेरा सारा संकट टल जायेगा। लड़का प्रदेश जाने लगा, रास्ते में एक नदी आई कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा था। तब उसने आखे हाथ में लेकर चौथ माता गणेशजी का ध्यान किया और चौथ माता की कृपा से नदी के बीच में से रास्ता निकल गया।

आगे रस्ते में घना जंगल आया, उसे कोई रास्ता नही सूझ रहा था। तब उसने चौथ माता का ध्यान कर आखे पूर दिए और रास्ता मिला गया। आगे चलकर वह एक नगर में पहुंचा। उस नगर के राजा के यहाँ एक बरतनों का अहाव पकता, जिसमें एक आदमी की बली दी जाती थी। वह लड़का एक बुढ़िया के घर पहुंचा, तो उसने देखा कि बुढ़िया रो रही हैं। उस लड़के ने पूछा, हे बुढ़िया माई ! तुम क्यों रो रही हो। तब बुढ़िया बोली मेरे एक ही बेटा हैं और कल राजा अहाव में उसकी बली देगा। उस लड़के ने कहा, माई घबरा मत कल तू अपने बेटे की जगह मुझे भेज देना बस तू मुझे भर पेट भोजन करवा देना। भोजन करवा कर बुढ़िया ने उस लड़के को अपने बेटे के स्थान पर सुला दिया।

राजा के सैनिक आये और उस लड़के को ले जाकर अहाव में चुनने लगे। तब वह चौथ माता के आखे अपने चरों और पूर कर जल का कलश भर बैठ गया और बोला, हे चौथ माता, हे गणेशजी मेरा संकट टालना। अहाव चुनकर आग लगा दी एक महीने में पकने वाला अहाव एक ही दिन में पक गया। यह जानकर राजा को आश्चर्य हुआ स्वयं अहाव देखने आये। राजा ने सैनिको को कलश उतारने को आदेश दिया। सैनिक कलश उतारने लगे तो अंदर से आवाज आई बर्तन धीरे उतरना सभी को आश्चर्य हुआ।

राजा ने उस लड़के से पूछा तुम कौन हो ? तुम्हारा जीवन कैसे बचा ? तब उसने कहा मैं वही हूँ, जिसको आपने अहाव में चुनवा दिया था। मेरी माँ चौथ माता का व्रत करती हैं। चौथ बिन्दायक जी ने मेरी रक्षा की है। तब राजा को विश्वास नहीं हुआ उसने दो घोड़े मंगवाये। एक पर खुद बैठा और दूसरे पर जंजीरों से बांधकर उसको बैठा दिया और कहा यदि तेरी जंजीरे खुलकर मेरे बंध जाएगी तो मैं चौथ माता को सच्ची मानूँगा।

उस लड़के ने श्रद्धा भक्ति से आखे पूर कर कहा – हे चौथ माता, आपने अब तक मेरी रक्षा करी, इस बार भी मेरी रक्षा करना। देखते ही देखते लड़के की जंजीरे खुलकर राजा के बंध गई। राजा ने कहा – तेरी चौथ माता सच्ची हैं। राजा ने अपनी कन्या का विवाह उस लड़के से कर दिया।  बहुत सारी धन सम्पति देकर विदा किया।

जब लड़का गाँव के पास पहुँचा तो गाँव के लोगो ने कहा, माई तेरा बेटा – बहूँ आ रहे हैं। बुढ़िया माई की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। लड़का माँ के पैरो में गिर गया और बोला माँ ये सब तेरी चौथ माता बिन्दायक जी की कृपा से हुआ हैं। यह उन्ही के व्रत का फल हैं |

इसके बाद उसने सारी नगरी में कहलवा दिया कि सब चौथ बिनायक जी का व्रत करेंगे। हो सके तो बारह महीने की, नहीं तो चार चौथ का व्रत तो सबको अवश्य करना चाहिए। हे चौथ माता ! जिस प्रकार उस लड़के की रक्षा करी, वैसे सबकी रक्षा करना लड़के

|| भादूड़ी चौथ माता की जय || || गणेशजी की जय ||

भादूड़ी (बहुला) चौथ व्रत कथा – 2

एक साहूकार के एक बेटा – बहू थे। बेटा व साहूकार के पास पूर्वजों का कमाया हुआ बहुत सारा धन था। दोनों कुछ काम नहीं करते उसी धन सम्पति से अपना गुजारा करते थे। जब बहूँ गाय को रोटी देने नीचे जाती तो उसकी पड़ोसन पूछती, बहूँ क्या खाकर आयी हैं ? तब वह कहती ठंडी – बासी खाकर आयी हूँ। एक दिन साहूकार के बेटे ने यह बात सुन ली और उसने अपनी माँ को सारी बात बताई और पूछा माँ तू रोज गर्म – गर्म खाना परोसती हैं, तब भी तेरी बहू पड़ोसन से ठंडी बासी खाकर आई हूँ, ऐसा क्यों कहती हैं। तब माँ ने कहा बेटा में तो चारो थालियाँ एक समान लगाती हूँ, पर यदि तेरे को विश्वास नहीं हो तो कल अपनी आखों से देख लेना।

दूसरे दिन बेटा तबियत खराब होने का बहाना कर लेट गया और उसने देखा कि उसकी पत्नी ने खीर – खांड का गर्मागर्म भोजन किया। रोजाना की तरह वह नीचे उतरी पड़ोसन ने पूछा, बहू क्या खा कर आई हैं ? उसने वही रोजाना वाला जवाब दिया। तब उसके पति ने उसका हाथ पकड़ लिया और पूछा अभी तो तू गर्म – गर्म खाना खाकर आई हैं, फिर झूठ क्यों बोला। तब उसकी पत्नी ने कहा, ये धन न तो आपका कमाया हैं और ना ही आपके पिताजी का। अगर इसी तरह धन खर्च करते रहे तो एक दिन गरीब हो जायेंगे। उसके पति को पत्नी की बात बुरी लगी और वह कमाने के लिए विदेश चला गया।

उसकी पत्नी बारह महीने की चौथ का व्रत किया करती थी। उसके पति को विदेश में रहते हुये बारह वर्ष बीत गये, तब चौथ माता बिन्दायक जी ने सोचा अब इसके पति को बुलाना चाहिए। नहीं तो इस कलियुग में हमें कौन मानेगा ? कौन पूजेगा ? चौथ माता लड़के के सपने में जाकर बोली कि तू घर चला जा, तेरी पत्नी तुझे बहुत याद करती है। तब उसने कहा, हे चौथ माता ! मेरा कारोबार फैला हुआ हैं इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकता। तब चौथ माता ने कहा, कल प्रात: स्नान – ध्यान से निवर्त हो पूजन कर घी का दीपक जलाकर चौथ माता बिदायक जी भगवान का नाम लेकर बैठ जाना। हिसाब हो जायेगा देने वाले दे जायेंगे, लेने वाले ले जायेंगे। उसने सुबह उठकर वैसा ही किया और उसका सारा कारोबार एक दिन में ही सिमट गया।

जब वह घर जा रहा था तो रास्ते में एक साँप जलने के लिए जाता हुआ मिला। उसने सोचा साँप जल जायेगा और उसने साँप को सिस्कार दिया। तभी साँप ने कहा, हे पापी दुष्ट मैं तो अपनी सर्प योनी से मुक्ति पाने जा रहा था, लेकिन तूने मुझे सिस्कार दिया इसलिए मैं तुझे डसूंगा। तब वह लड़का बोला , हे सर्पराज ! तुम मुझे अवश्य डस लेना बस मैं एक बार अपनी माँ एवं पत्नी से मिलना चाहता हूँ। आप कल रात मुझे डस लेना। मैं आपको वचन देता हूँ।

जब पति घर आया तो बहुत उदास था। माँ और पत्नी से मिला और अपने कमरे में जाकर सो गया। पत्नी के पूछने पर उसने सारी घटना बता दी। उसकी पत्नी बहुत चतुर थी। उसने पहली सीढी पर दूध का कटोरा रख दिया, दूसरी पर बालू मिटटी बिछा दी, तीसरी पर फूल की पंखुड़िया बिखेर दी, चौथी पर इत्र छिड़क दिया, पांचवी पर गुलाल बिछा दी, छठी पर मिठाई रख दी, सातंवी पर सत्तू डाल दिया। और अपनी चोटी नीचे लटका कर कमरे का दरवाजा खुला छोड़कर सो गई। साँप आया, उसने दूध पिया, बालू में किलोल करी  बोला, “साहूकार के बेटे तूने सुख तो बहुत दिया पर वचनों से बंधा हूँ डसूंगा अवश्य।”

सातों सीढियों पर उसने ऐसा ही कहा जैसे ही वह डसने लगा “चौथ माता और बिन्दायक जी ढाल और तलवार बन गये और साँप के चार टुकड़े कर दिए और सीढियों पर खून ही खून हो गया। साँप की पूछ का एक टुकड़ा लड़के की जूती में गिर गया, तब उसने सोचा कि जब यह अपनी जूती पहनेगा तब डस लूँगा। उसकी पत्नी प्रतिदिन चींटियों को आटा खिलाती थी। चीटियों ने सोचा कि इसकी पत्नी हमें हमेशा शक्कर, आटा खिलाती हैं। इसलिए इसकी रक्षा करनी चाहिए। और सभी चीटियों ने मिलकर उसकी पूछ को खोखला कर दिया। जैसे ही सुबह हुई वहाँ खून ही खून हो रहा था। माँ यह देख रोने लगी उसने सोचा मेरे बेटे बहू को किसी ने मार दिया।

माँ की आवाज सुन बेटा उठा और बोला माँ हमारा बेरी दुश्मन मरा हैं। और पूछने लगा कि मेरे पीछे से किसी ने धर्म – पुण्य  किया था क्या ? तब माँ बोली मैंने तो कुछ नहीं किया। पत्नी से पूछा तो पत्नी ने कहा मैंने बारह महीने की चौथ माता के व्रत करती थी। इसलिए चौथ माता बिन्दायक जी भगवान ने हमारी रक्षा करी हैं। तब सासुजी बोली मैं इसको चार समय खाना देती थी तो फिर इसने चौथ का व्रत कब किया।

तब बहू बोली, एक समय का खाना गाय को खिलाती थी, एक समय का ब्राह्मणी को देती थी, एक समय का जमीन में गाढ़ देती और एक समय का चौथ का पूजन कर चाँद को अर्ध्य देकर मैं स्वयं खाती थी। यदि विश्वास नहीं हो तो पूछ लो। जब गाय माता से पूछा तो गाय के मुंह से पलाश के फूल गिरने लगे। ब्राह्मणी से पूछा तो उसने हामी भर ली, जमीन खोद कर देखा तो सोने के चक्र मिले। तब उसने सारी नगरी में कहलवा दिया सब कोई चौथ माता को व्रत करे। व्रत करने से अन्न, धन, लाज, लक्ष्मी, सन्तान प्राप्त होती हैं।

जैसी जिसकी मनोकामना होती हैं, चौथ माता उसे अवश्य पूर्ण करती हैं। हे चौथ माता ! जैसे उसके पति की रक्षा करी वैसे सबकी करना।

|| चौथ बिन्दायक जी की जय ||

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